वो वक्त पर आए तो,
मौसम का मिजाज़ बदल जाती है;
पर बेवक्त की बारिश,
अकसर फसले उजाड़ देती है।।1।।
मेहनत की कमाई,
कभी ना कभी जिंदगी सवार ही देती है,
बेईमानी से मिली शोहरत,
आने वाली नस्लें बिगाड़ ही देती हैं।।2।।
वो अपने गम नहीं बताता,
उसकी मुस्कान ही दिखाई देती है,
बेटी की बिदाई मगर,
बाप को रुला ही देती है।।3।।
नींद भी गरीबों से बेईमानी करती है,
वो भुखे हो तो उनके घर नहीं जाती,
मांगते है वो, तो इसमें बुराई क्या है?,
पेट की आग हर खुद्दारी भुला ही देती है।।4।।
खिलौने सबको नसीब नहीं होते,
कोई कचरा उठाने भी जाता है,
सुबह उठकर, हर बच्चा स्कूल नहीं जाता,
ग़रीबी अकसर पढ़ाई छुड़ा ही देती है।।5।।
संभालकर रखना उनको, वो वक्त का तजुर्बा रखते है,
घर के बुजुर्ग, घर की रौनक होते है,
तब तुम्हे डर ही कैसा अनहोनी का,
बुजुर्गो की दुआ, मुसीबतों से बचा ही लेती है।।6।।