रहो खड़े जीवन रण में, हो निर्भीक निडर,
कर गर्जन गभीर, एक निर्मम हुंकार भरो,
शर[1] रिक्त हो जब भी तूणीर, स्वयं का संधान करो,
आत्मचिंतीत जीवन लक्ष्यों के भेदन का,
ऎसा आत्मघाती, कोई तो उपाय करो।।
है अभेद्य क़िले सा वह नर,
जलती हो जिसमें, विजय की आग प्रखर,
प्रस्फुटित[2] हो, जब भी उसका अंत:अनल[3],
मचा देता है फिर वह भीषण गदर,
बांध नहीं सकते तब उसे, कोई भी पाश प्रबल।।
चुनौतियों से श्रृंगारित रणभूमि, तुम क्यो डर डर जाते हो?,
आगे बढ़ स्वीकार करो, यही गुण है विरो का,
क्यो कदम भिच तुम लेते हो, मुरख वृथा ही भय खाते हो,
है नहीं यहां कोई तुम्हारा, खुदही खुद संभलना होगा,
कितने ही बाण धसे हो देह में, वीरगति तक लड़ना होगा।।
वीरगति तक लड़ना होगा..
- शर : तीर
- प्रस्फुटित : विस्फोट होना (eruption)
- अनल : अग्नी, आग