तब, मैंने लिखें गीत कई
भरे रंग बहारो ने,खिली बगिया जब पतझड़ बाद कई,केवल सृजन था, ना प्रलय कहीं,जब मैंने पाए गैरो में मीत कहीं,तब, मैंने लिखें गीत कई।।1।। शोहरत ना थी, ठीक सही,पर हर अपना साथ हमारे था,सबकुछ खो कर भी,था जब मैं निस्वार्थ खड़ा,तब, मैंने लिखें गीत कई।।2।। ना टिस हृदय में, ना कसक कहीं,भुलाकर हर किस्सा, लिखी…